वैशाखी, 14 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है ?
वैशाखी, 14 अप्रैल 2022
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वैशाखी का त्यौहार हर वर्ष 13-14 अप्रैल को मनाया जाता है । इसे अपने अपने रीति रिवाज के अनुसार पूरे देश में मनाया जाता है पंजाब में इस त्यौहार का खास महत्व है । सुबह में किसानों के लिए यह त्यौहार एक उम्मीद और तब्दीली लाता है । क्योंकि इस वक्त गेहूं की फसल पक जाती है और कटाई भी शुरू हो जाती है । परंपरागत रूप से इस फसल की कटाई वैशाखी से शुरू होती है ।
इस त्योहार पर बहुत सारे गीत भी लिखे जा चुके हैं । भारत त्योहारों का देश है यहां कई धर्म के लोग रहते हैं और इन सभी धर्मों के अपने-अपने त्योहार होते हैं । पूरे साल भर कोई न कोई त्यौहार आता ही रहता है । वैसे वैशाखी का त्यौहार 13-14 तारीख को मनाया जाता है । इस समय खेतों में रवि की फसल लहराती आती है किसानों के मन में ढेर सारी खुशियां रहती हैं यह त्योहार पूरे पंजाब के साथ उत्तर भारत में मनाया जाता है ।
वैशाखी को अलग अलग नाम से भी जाना जाता है
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केरल में यह त्यौहार विशु कहलाता है, बंगाल में नव वर्ष, असम में लॉन्गाली बिहू, तमिलनाडु में पूथूडू और बिहार में इसे वैशाख के नाम से पुकारा जाता है । यह दिन किसानों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिन रवि फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है । इसी दिन गेहूं की पकी फसल को काटने की शुरुआत ही होती है ।
इस दिन किसान सुबह उठ कर नहा धोकर मंदिर और गुरुद्वारों में जा कर पूजा करते हैं । कहा जाता है कि इस दिन 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पथ की स्थापना की थी इस त्यौहार को सामूहिक जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं । इसे मौसम के बदलाव का पर्व भी कहा जाता है ।
इस समय सर्दियों की समाप्ति और गर्मियों का आगमन होता है । व्यापारियों के लिए यह महत्वपूर्ण दिन है इस दिन देवी दुर्गा और भगवान शंकर जी की पूजा होती है । इस दिन व्यापारी नए कपड़े धारण करते है और अपने नए काम का प्रारंभ करते हैं ।
क्यों इतना महत्वपूर्ण है वैशाखी का त्यौहार
बैसाखी का त्यौहार समृद्धि और खुशियों का त्योहार है इसके मनाया जाने का मुख्य आधार पहली वैशाखी का पंजाबी नववर्ष का आरंभ, फसलों के पकने और कटने की किसानों की खुशियां है ।
इतिहास की दो घटनाओं ने वैशाखी के पर्व को अत्यधिक यादगार और महत्वपूर्ण बना दिया है, यह दो घटनाएं 1699 की बैसाखी को सिख धर्म के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जीने अनंतपुर साहिब में खालसा पथ का निर्माण किया था ।
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13 अप्रैल 1919 को जलिया वाले बाग में शहीद हुए 1699 के बैसाखी के दिन अनंतपुर साहिब में वैशाखी के विशाल समागम गुरु गोविंद सिंह जी ने बड़ेेे नाटकीय ढंग से देशभक्त कौम केे लिए शहीदी के जज्बे की पांच सिखों की शिक्षा, सिख धर्म के निष्ठा और समर्पण को देखते हुए गुरु गोविंद ने उन्हें अमृत चखाया ।
पांचो प्यारों लोहे की बांटे मे सतलज नदी का पानी लेकर उसमेंं शक्कर मिलाकर गुरुजी ने अपनी कटार से हिला दिया यह जल अमृत जल कहलाया । अमृत चखाना एक तरह से धर्म और देश पर कुर्बानी के लिए तैयार रहने का संकल्प था ।
सिखों के पांच तत्व कच्छ, कंघी, केस, कृपाण और कड़ा
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गुरु जी ने पांच तत्व कच्छ, कंघी, केस, कृपाण और कड़ा अनिवार्य रूप से धारण करने का निर्देश दिया । खालसा पंथ यह स्वरूप आज भी यथावत मौजूद है पुराणों में कहा गया है की वैशाख माह में प्रातः काल मेंं स्नान करना असल में यज्ञ केे समान है ।
सिख समाज वैशाख केे त्यौहार को किसान सर्दियों की फसल काट देने के बाद नए साल की रूप में मनाते हैं इसलिए पंजाब केेे आसपास सबसे बड़ा त्यौहार मनाया जाता है वैशाख का त्यौहा बलिदान का त्यौहार भी कहा जाता है मुगल शासक औरंगजेब ने तेग बहादुर सिंह को दिल्ली के चांदनी चौक पर शहीद कर दिया था। तभी गुरु गोविंद सिंंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की थी ।