"होली: रंग, रिश्ते और अपनापन"
होली पर प्रदेश से घर वापसी: अपनेपन के रंगों की ओर
होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि अपने घर, अपनी मिट्टी और अपनों के बीच लौटने का एक खूबसूरत बहाना भी है। जो लोग रोज़ी-रोटी के लिए अपने गांव-शहरों से दूर किसी प्रदेश में काम कर रहे होते हैं, उनके लिए होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि घर वापसी का त्योहार भी बन जाती है।
सफर जो अपनों की खुशबू लाता है
ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते हुए जैसे-जैसे गांव-कस्बे करीब आते हैं, दिल में अजीब-सी खुशी दौड़ने लगती है। स्टेशन पर उतरते ही अपनों की आंखों में जो चमक होती है, वह दुनिया की किसी भी खुशी से बड़ी होती है। मां के हाथों की बनी गुझिया और दोस्तों के साथ गली में दौड़ती बचपन की यादें सब कुछ ताजा कर देती हैं।
घर का आंगन और होली की रौनक
जहां शहरों में होली रंग-बिरंगे आयोजनों तक सीमित रहती है, वहीं गांवों और कस्बों में इसका एक अलग ही रंग होता है। होली की सुबह जैसे ही घर का आंगन गुलाल से भरता है, वैसे ही मन भी पुराने दिनों की तरह रंगीन हो जाता है। बचपन के दोस्त, भाई-बहन, मां-पापा और पड़ोस के लोग—सब मिलकर ऐसा माहौल बना देते हैं कि लगता है, मानो जिंदगी की सारी थकान मिट गई हो।
अपनों से मिलने की खुशी
प्रदेश में रहते हुए भले ही मन काम में लगा रहता है, लेकिन त्योहारों पर घर की याद कुछ ज्यादा ही सताने लगती है। होली पर घर लौटने का उत्साह इसलिए भी खास होता है क्योंकि यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि रिश्तों की ताजगी का अवसर होता है।
होली जो दिलों को जोड़ती है
होली सिर्फ रंगों से खेलना नहीं, बल्कि गिले-शिकवे मिटाने और दिलों को करीब लाने का भी अवसर है। गांव-शहर के हर कोने में ढोल की थाप, अबीर-गुलाल की महक और प्यार से भरी हंसी-ठिठोली यही बताती है कि होली सिर्फ रंगों से नहीं, बल्कि अपनों के साथ रहने से पूरी होती है।
अपनेपन की होली, घर की होली
प्रदेश में काम करने वाले लाखों लोग जब होली पर घर लौटते हैं, तो वे सिर्फ खुद नहीं आते, बल्कि अपने साथ खुशियां, उमंग और रंग भी लाते हैं। यही घर की होली होती है—जहां हर गली, हर चौपाल और हर आंगन में अपनापन झलकता है।