रविवार 13 2025

"ज्ञान ही मनुष्य को महान बनाता है।" — डॉ. भीमराव अंबेडकर


14 अप्रैल का दिन भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में याद किया जाता है। यह वह दिन है जब भारत के संविधान निर्माता, समाज सुधारक, और महान न्यायविद् डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म हुआ था। बाबा साहेब ने न केवल सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि उन्होंने समाज के वंचित वर्गों को न्याय और समान अधिकार दिलाने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।


14 डिग्रियाँ और 8 भाषाओं के ज्ञाता

डॉ. अंबेडकर ने 14 डिग्रियाँ हासिल की थीं और वे 8 भाषाएँ जानते थे, जिनमें संस्कृत, पाली, अंग्रेज़ी, हिंदी, मराठी, फारसी, जर्मन और फ्रेंच शामिल हैं। खास बात ये है कि बचपन में उन्हें संस्कृत पढ़ने से रोका गया था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे सीखा।

पहले कानून मंत्री बनने के बाद इस्तीफा

बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत के पहले कानून मंत्री के तौर पर काम करने के बाद, उन्होंने हिंदू कोड बिल पास न होने पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। यह बिल महिलाओं को समान अधिकार देने के लिए था, लेकिन काफी विरोध हुआ।

‘रूप और रूपैया’ का विरोध

बाबा साहेब ने भारतीय समाज में दहेज प्रथा का भी खुलकर विरोध किया था। उन्होंने दहेज को महिलाओं की गुलामी का एक रूप कहा था और जीवन भर इसके खिलाफ लिखते और बोलते रहे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड पर तीखी टिप्पणी

जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था, तब उन्होंने अंग्रेज़ों के इस अत्याचार की तीखी आलोचना की थी, जबकि वे इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने भारतीयों पर अत्याचार के खिलाफ कई बार आवाज़ उठाई थी।

भारतीय सेना में दलितों की भर्ती के पक्षधर

बाबा साहेब ने ब्रिटिश सरकार से मांग की थी कि सेना में दलितों की भर्ती की जाए, ताकि दलित समाज में आत्मविश्वास और समानता की भावना बढ़े।

बौद्ध धर्म का गहरा अध्ययन

बौद्ध धर्म अपनाने से पहले उन्होंने दुनिया के सभी बड़े धर्मों का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने बाकायदा कहा था कि “मैं उस धर्म को अपनाऊंगा जो मुझे और मेरे समाज को सम्मान और समानता दे।”

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का सुझाव

डॉ. अंबेडकर ने "The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution" नामक अपनी किताब में जो आर्थिक सिद्धांत रखे थे, उन्हीं के आधार पर भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की स्थापना की गई थी।

महिलाओं के अधिकारों के पैरोकार

वे सिर्फ दलितों के ही नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों के भी बड़े समर्थक थे। वे चाहते थे कि महिलाओं को संपत्ति में अधिकार मिले, उन्हें शिक्षा और नौकरी के बराबर अवसर मिलें।

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