बुधवार 12 2025
तो इस बार होली पर, घर लौटें… सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि उन अपनों के लिए भी, जो आपकी राह देख रहे हैं।
सोमवार 13 2025
खिचड़ी के दिन पतंग क्यों उड़ाते हैं?
पतंग उड़ाने के लिए शुभकामनाएं!
"पतंगों के रंगीन आसमान में, खुशियों का अंबर बसाएं। मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।"
भारत विविध परंपराओं और त्योहारों का देश है, जहां हर पर्व के पीछे कोई न कोई सांस्कृतिक, धार्मिक, या ऐतिहासिक महत्व होता है। ऐसी ही एक परंपरा है मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की। इस त्योहार को उत्तर भारत में "खिचड़ी" के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर खिचड़ी के दिन पतंग क्यों उड़ाई जाती है? आइए, इस परंपरा के पीछे छिपे कारणों और मान्यताओं को समझते हैं।
1. मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व
मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का दिन होता है, जिससे दिन और रात की अवधि में बदलाव होता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जिसका मतलब है कि सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर अग्रसर होता है। इसे सकारात्मक ऊर्जा और नए आरंभ का प्रतीक माना जाता है। पतंग उड़ाना इस खगोलीय बदलाव का प्रतीकात्मक उत्सव है, जिसमें लोग आसमान में पतंगें उड़ाकर खुशी व्यक्त करते हैं।
2. आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण
पतंग उड़ाने की परंपरा में एक गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा है। पतंग का आसमान में ऊंचा उठना आत्मा के मोक्ष की ओर संकेत करता है। इसे यह भी माना जाता है कि पतंग उड़ाकर हम अपनी इच्छाओं और नकारात्मकता को त्यागते हैं और ईश्वर से जुड़ने की कोशिश करते हैं।
3. मौसम परिवर्तन और स्वास्थ्य
मकर संक्रांति के समय सर्दी धीरे-धीरे कम होने लगती है और वसंत ऋतु का आगमन होता है। पतंग उड़ाने की गतिविधि से लोग सुबह-सुबह बाहर निकलते हैं, धूप सेंकते हैं और ताजी हवा में समय बिताते हैं। इससे विटामिन डी मिलता है और स्वास्थ्य बेहतर होता है।
4. सामाजिक समरसता का प्रतीक
पतंग उड़ाना न केवल मनोरंजन है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और भाईचारे का भी प्रतीक है। बच्चे, बूढ़े और जवान सभी मिलकर इस दिन पतंगबाजी का आनंद लेते हैं। आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें देखकर मन प्रसन्न होता है और सभी के बीच एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
5. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण
ऐसा माना जाता है कि पतंग उड़ाने की परंपरा प्राचीन भारत में राजाओं और नवाबों के समय से चली आ रही है। मकर संक्रांति पर पतंगबाजी एक शाही शौक हुआ करती थी, जो धीरे-धीरे आम लोगों के बीच लोकप्रिय हो गई। आज भी गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। गुजरात के अहमदाबाद में तो इस दिन अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है।
6. खिचड़ी और पतंग का संबंध
खिचड़ी मकर संक्रांति का पारंपरिक भोजन है। इस दिन तिल, गुड़ और खिचड़ी का सेवन करने का विशेष महत्व है। लोग सुबह खिचड़ी बनाकर पतंग उड़ाने के लिए घरों की छतों पर इकट्ठा होते हैं। पतंग उड़ाते हुए "वो काटा!" की गूंज और खिचड़ी का स्वाद त्योहार की खुशी को दोगुना कर देता है।
मकर संक्रांति और पतंग उड़ाने की परंपरा केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है। इसके पीछे गहरे सांस्कृतिक, धार्मिक और स्वास्थ्य से जुड़े कारण हैं। यह परंपरा हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य और सामाजिक मेलजोल का संदेश देती है। तो अगली बार जब आप मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाएं, तो इन परंपराओं के पीछे के अर्थ को जरूर याद रखें और अपने परिवार और दोस्तों के साथ इस त्योहार का भरपूर आनंद लें।
सोमवार 04 2024
छठ पूजा: श्रद्धा, आस्था और प्रकृति के प्रति समर्पण का पर्व
छठ पूजा, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में हर्षोल्लास और भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य देवता की उपासना के लिए समर्पित है। छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि इसमें प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भी भाव समाहित है। यह पर्व पारिवारिक एकता, सामाजिक समरसता और अनुशासन का प्रतीक है।
छठ पूजा का महत्व और पौराणिक कथा
छठ पूजा का संबंध मुख्य रूप से सूर्य देवता और छठी मइया से है। सूर्य देवता को जीवन का आधार माना जाता है क्योंकि वे धरती पर जीवन प्रदान करते हैं। इस पर्व में सूर्य की ऊर्जा और प्रकृति के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है। मान्यता है कि सूर्य देवता की कृपा से भक्तों के समस्त कष्ट और बीमारियां दूर होती हैं, और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथाओं में से एक कथा रामायण काल से है। माना जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने अपने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य देवता की पूजा की थी। इसके अलावा महाभारत में भी कुंतीपुत्र कर्ण द्वारा सूर्य की पूजा का वर्णन मिलता है। कर्ण प्रतिदिन सूरज को अर्घ्य अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करते थे।
छठ पूजा का समय और महत्व
यह पर्व दिवाली के ठीक छह दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रतियों (व्रत रखने वाले) द्वारा कठिन तप किया जाता है, जिसमें निर्जल व्रत, स्नान और विशेष अनुष्ठान शामिल होते हैं।
छठ पूजा का चार दिवसीय कार्यक्रम
छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला एक महापर्व है। आइए जानते हैं इस पर्व के चारों दिनों का महत्व और अनुष्ठान:
- पहला दिन: नहाय-खायछठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर शुद्धता प्राप्त करते हैं। इसके बाद घर में पवित्र भोजन बनाकर सेवन किया जाता है। इस दिन का उद्देश्य शरीर और आत्मा की पवित्रता बनाए रखना है।
- दूसरा दिन: खरनादूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खीर, रोटी और फलों का सेवन करते हैं। खरना का महत्व आत्मसंयम और तपस्या में निहित है, जो व्रती को मानसिक शुद्धता प्रदान करता है।
- तीसरा दिन: संध्या अर्घ्यतीसरे दिन व्रती संध्या समय नदी या जलाशय के किनारे सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दिन व्रती जल में खड़े होकर सूर्य को जल और प्रसाद चढ़ाते हैं। यह प्रक्रिया श्रद्धालुओं के समर्पण और आस्था का प्रतीक मानी जाती है।
- चौथा दिन: उषा अर्घ्यचौथे और अंतिम दिन सूर्योदय के समय उषा अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती सुबह-सुबह जलाशय के किनारे पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं और अपने व्रत का समापन करते हैं। इसके बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है और व्रती अपने परिवार और मित्रों के साथ प्रसाद बांटते हैं।
छठ पूजा की विशेषताएं और नियम
छठ पूजा के दौरान व्रती को कई प्रकार की कठिन तपस्या का पालन करना होता है। इस व्रत में न तो अन्न का सेवन किया जाता है और न ही पानी। व्रत के दौरान पूर्ण पवित्रता और सादगी का पालन किया जाता है। पूजा में फल, गन्ना, ठेकुआ, नारियल, केला, नींबू आदि का विशेष रूप से प्रयोग होता है। प्रसाद बनाने में मिट्टी के चूल्हे, बांस की टोकरी और मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता है।
छठ पूजा का वैज्ञानिक और पर्यावरणीय महत्व
छठ पूजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है। सूर्य की किरणें स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं, और इस व्रत के दौरान शरीर को सूर्य की ऊर्जा का संचार मिलता है। इसके अलावा, छठ पूजा का एक अन्य महत्व यह है कि यह पर्व स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति भी जागरूकता फैलाता है। इस पर्व के दौरान नदियों, तालाबों और आसपास के क्षेत्रों की सफाई की जाती है।
छठ पूजा न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व से भी भरपूर है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में धैर्य, संयम और सादगी का कितना बड़ा महत्व है। छठ पूजा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो हर किसी को प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और आस्था प्रकट करने की प्रेरणा देती है।
छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है; बल्कि यह पर्व समाज को एकता, सेवा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। इस त्योहार में अमीर-गरीब, जाति और वर्ग का भेद मिट जाता है और सभी लोग एक साथ मिलकर इस पवित्र पर्व को मनाते हैं।
छठ पूजा में महिलाएं और समाज की भागीदारी
छठ पूजा में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे न केवल व्रत रखती हैं, बल्कि परिवार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए कठिन तप भी करती हैं। परिवार के सभी सदस्य और समाज के लोग मिलकर इस पर्व की तैयारियों में सहयोग करते हैं। महिलाएं मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद बनाती हैं, गन्ने की माला तैयार करती हैं और बांस की टोकरियों में प्रसाद सजाती हैं। समाज का हर व्यक्ति छठ घाटों की सफाई, सजावट और प्रबंधन में अपना योगदान देता है, जो सामूहिक एकता और सहभागिता को दर्शाता है।
छठ गीतों का महत्व
छठ पर्व पर विशेष गीतों का भी अत्यधिक महत्व है। महिलाएं छठ गीत गाती हैं, जिनमें छठी मइया की महिमा और सूर्य देवता की महत्ता का वर्णन होता है। ये गीत पीढ़ी दर पीढ़ी इस पर्व की महिमा को बरकरार रखने में सहायक हैं और नई पीढ़ी को भी इस संस्कृति से जोड़ते हैं।
प्रमुख छठ गीतों में से कुछ गीत इस प्रकार हैं:
- "कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये।"
- "उगी हे सूरज देव, भइल अरघ के बेर।"
- "केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव।"
ये गीत न केवल भक्तिभाव को बढ़ाते हैं बल्कि पूरे माहौल में श्रद्धा और प्रेम का संचार भी करते हैं।
छठ पूजा के दौरान स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण
छठ पूजा के दौरान विशेष रूप से स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है। घाटों की सफाई, जलाशयों की पवित्रता और पूजा के स्थानों को स्वच्छ बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। यह पर्व नदियों, जलाशयों और उनके किनारों को साफ रखने की प्रेरणा देता है।
आधुनिक समय में बढ़ते प्रदूषण और जल संसाधनों के दूषित होने के कारण, छठ पूजा हमें पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास कराती है। इस पर्व में मिट्टी के बर्तन और बांस की टोकरियों का उपयोग होता है, जो पर्यावरण-अनुकूल होते हैं। यह पर्व प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का एक आदर्श उदाहरण है।
नई पीढ़ी और छठ पूजा
आज के युग में, जब लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे समय में छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ता है। छठ पूजा को आधुनिकता के साथ संतुलित करते हुए मनाने की भी आवश्यकता है ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित रह सके और आने वाली पीढ़ियां भी इस पर्व की महत्ता को समझें।
छठ पूजा का वैश्विक महत्व
छठ पूजा अब केवल भारत में ही नहीं बल्कि उन सभी देशों में मनाई जाती है, जहाँ बिहार, यूपी और झारखंड के लोग बसे हुए हैं। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस और अन्य कई देशों में भी लोग इस पर्व को पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाते हैं। यह पर्व हमारी भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का कार्य भी करता है।
छठ पूजा भारतीय संस्कृति, आस्था और परंपराओं का एक अनुपम पर्व है। यह पर्व हमें संयम, धैर्य, अनुशासन और परिवार के प्रति समर्पण की भावना सिखाता है। प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देता यह पर्व समाज में भाईचारा, प्रेम और शांति को बढ़ावा देता है।
छठ पूजा भारतीय समाज के आदर्श मूल्यों और संस्कारों का प्रतीक है। यह पर्व हमें अपनी संस्कृति की महत्ता को समझने और उसका सम्मान करने की प्रेरणा देता है। छठ पूजा का पर्व हर व्यक्ति को यही सिखाता है कि हम सभी प्रकृति का एक हिस्सा हैं, और हमें इसके प्रति श्रद्धा और आदर का भाव बनाए रखना चाहिए।
अंत में
छठ पूजा के इस पर्व में श्रद्धालु सूर्य देवता से जीवन की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह एक ऐसा उत्सव है, जो हमें जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है। इस पर्व का महत्व पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहेगा, और यह हमें अपनी भारतीयता और संस्कारों की याद दिलाता रहेगा।
छठ पूजा के पावन पर्व पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
मंगलवार 29 2024
मिट्टी के दीये की खोज: एक अनमोल धरोहर
"इस दीवाली, एक दीया प्रकृति के नाम और एक दीया संस्कृति के नाम।"
आपका छोटा कदम—मिट्टी के दीये जलाना—न केवल रोशनी फैलाएगा, बल्कि धरती और हमारी परंपराओं के प्रति कृतज्ञता का भी प्रतीक बनेगा।
मिट्टी के दीयों की शुरुआत
मिट्टी के दीये का इतिहास मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। पुरातत्वविदों के अनुसार, प्राचीन काल में लोग अंधकार से बचने के लिए प्राकृतिक साधनों का उपयोग करते थे। उसी समय, मिट्टी से बने साधारण बर्तन और दीये भी उपयोग में आने लगे। प्रारंभ में इन दीयों का उपयोग केवल प्रकाश के स्रोत के रूप में किया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे यह धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक बन गए।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी प्राचीन सभ्यताओं में खुदाई के दौरान भी मिट्टी के बर्तन और छोटे दीये मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय संस्कृति में मिट्टी के दीयों का प्रचलन बहुत पहले से रहा है। माना जाता है कि इंसान ने मिट्टी को पानी के साथ मिलाकर बर्तन बनाने की कला सीखी, और फिर अग्नि से उन्हें पकाकर मजबूत बनाया। इसी प्रक्रिया के तहत दीयों का निर्माण भी संभव हुआ।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
मिट्टी के दीये भारतीय समाज में सिर्फ प्रकाश का साधन नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक प्रतीक भी हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दीया ज्ञान, सकारात्मकता और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। विशेष रूप से दीवाली के त्योहार पर दीये जलाने का महत्व भगवान राम के अयोध्या लौटने से जुड़ा हुआ है, जब लोगों ने पूरे नगर को दीपों से सजाकर उनका स्वागत किया था।
इसके अलावा, पूजा-अर्चना के समय भी दीया जलाने का महत्व होता है। माना जाता है कि दीप की लौ नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और वातावरण को शुद्ध करती है।
आधुनिक समय में मिट्टी के दीयों की पुनर्खोज
हाल के वर्षों में इलेक्ट्रिक लाइट्स और मोमबत्तियों के बढ़ते प्रचलन के बावजूद, लोग मिट्टी के दीयों की ओर फिर से आकर्षित हो रहे हैं। पर्यावरण जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ लोग पारंपरिक वस्तुओं का सम्मान करने लगे हैं। कई लोग अब प्लास्टिक और चीनी लाइट्स की जगह मिट्टी के दीये का उपयोग करके त्योहारों को पर्यावरण-अनुकूल तरीके से मनाने लगे हैं।
मिट्टी के दीयों की खोज और उनकी परंपरा हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक सुंदर हिस्सा है। ये न केवल प्रकाश का माध्यम हैं, बल्कि हमें प्रकृति के साथ संतुलन और आध्यात्मिकता का भी संदेश देते हैं। आज के समय में हमें मिट्टी के दीयों के उपयोग को बढ़ावा देकर न केवल पर्यावरण को सुरक्षित रखना चाहिए, बल्कि उन कारीगरों का भी सहयोग करना चाहिए जो अपने हुनर से इन्हें तैयार करते हैं।
आइए, इस दीवाली हम सब मिलकर मिट्टी के दीये जलाएं और धरती को रोशन करने के साथ-साथ उसके प्रति कृतज्ञता भी प्रकट करें।
मिट्टी के दीये और लोककला का संगम
मिट्टी के दीयों को सिर्फ एक साधारण बर्तन मानना गलत होगा। ये भारतीय लोककला और हस्तशिल्प की जीवंत मिसाल हैं। हर क्षेत्र के कुम्हार अपनी विशिष्ट शैली में दीयों को आकार देते हैं। राजस्थान के पुष्कर मेले से लेकर कुम्हारटोली (कोलकाता) और वाराणसी के घाटों तक, अलग-अलग तरह के मिट्टी के दीये तैयार होते हैं—कुछ पर हाथ से पेंटिंग की जाती है, तो कुछ को जटिल नक्शों और अलंकरण से सजाया जाता है। दीये न केवल परंपराओं से जुड़े रहते हैं, बल्कि कुम्हारों की कला और रचनात्मकता का भी प्रमाण हैं।
आधुनिक बाजार में: अब बाजार में मिट्टी के दीयों के नए रूप भी देखने को मिलते हैं, जैसे—
- रंगीन और पेंट किए गए दीये
- खुशबूदार दीये
- दीये के अंदर छोटे-छोटे पौधे लगाकर मिनिएचर गार्डन का रूप देना
- एलईडी के साथ पारंपरिक डिज़ाइन
इस तरह पारंपरिक मिट्टी के दीये अब सजावट और गिफ्टिंग के लिए भी इस्तेमाल होने लगे हैं, जो त्योहारों में एक नया आयाम जोड़ते हैं।
त्योहारों से परे: दैनिक जीवन में मिट्टी के दीयों का उपयोग
मिट्टी के दीयों का महत्व केवल त्योहारों तक सीमित नहीं है। भारत के कई ग्रामीण इलाकों में आज भी मिट्टी के दीये दैनिक जीवन का हिस्सा हैं। घर के आंगन में शाम को दीया जलाना न केवल परंपरा है, बल्कि यह कीड़ों को दूर रखने और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने का एक साधन भी है। साथ ही, तुलसी पूजा के समय हर दिन दीया जलाना शुभ माना जाता है।
मिट्टी के दीये: स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक
महात्मा गांधी ने स्वदेशी आंदोलन के दौरान भारतीय कारीगरों और उनके उत्पादों को प्रोत्साहित करने पर ज़ोर दिया था। उस समय मिट्टी के दीये जैसे स्थानीय उत्पाद आत्मनिर्भरता का प्रतीक बने। आज भी, "वोकल फॉर लोकल" और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के अंतर्गत हम इन पारंपरिक वस्तुओं के महत्व को समझ रहे हैं। दीवाली जैसे अवसरों पर मिट्टी के दीये खरीदकर हम पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था, दोनों का सहयोग कर सकते हैं।
मिट्टी के दीये और पर्यावरण संरक्षण
आज जब पर्यावरणीय चुनौतियां बढ़ रही हैं, मिट्टी के दीये प्लास्टिक और मोमबत्तियों का एक बेहतर विकल्प साबित होते हैं।
- प्लास्टिक से मुक्ति: प्लास्टिक के सजावटी सामान और बिजली की रोशनी, जो अक्सर नुकसानदायक होती है, की तुलना में दीये पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं।
- जीव-जंतुओं के अनुकूल: मोमबत्तियों से निकलने वाला कार्बन और गंध कई बार पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि दीये पूरी तरह प्राकृतिक और सुरक्षित हैं।
- जीवाश्म ईंधनों का कम उपयोग: मिट्टी के दीये बनाने में कम ऊर्जा लगती है और इन्हें दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है या मिट्टी में मिलने के बाद यह जैविक रूप से नष्ट हो जाते हैं।
कारीगरों और परंपराओं को जीवित रखने का दायित्व
भारत में हज़ारों परिवार कुम्हारगीरी पर निर्भर हैं। मिट्टी के दीयों की खरीद करके हम उन कारीगरों के कौशल और मेहनत का सम्मान कर सकते हैं। यह सिर्फ एक दीया नहीं, बल्कि उन अनगिनत हाथों की मेहनत का परिणाम है जो अपनी कला से त्योहारों को जीवंत बनाते हैं।
हालांकि, आधुनिक जीवनशैली के कारण मिट्टी के दीयों की मांग में कमी आई है, लेकिन जागरूकता बढ़ने के साथ अब लोग एक बार फिर इन्हें अपनाने लगे हैं। कई एनजीओ और सरकारी संगठन भी कुम्हारों को आर्थिक मदद और प्रशिक्षण देकर इस परंपरा को बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं।
कैसे करें मिट्टी के दीयों का उपयोग अधिक प्रभावी तरीके से?
- तेल की बचत: दीयों में रिफाइंड तेल या सरसों का तेल इस्तेमाल करके हम स्वच्छ और बेहतर जलने वाला ईंधन पा सकते हैं।
- रंगाई और सजावट: घर पर खाली मिट्टी के दीयों को रंगकर और सजाकर बच्चों के साथ एक रचनात्मक गतिविधि की जा सकती है।
- दीयों से गार्डन सजाएं: उपयोग के बाद इन दीयों में छोटे पौधे लगाकर बगीचे या बालकनी में सजावट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस दीवाली और आने वाले हर त्योहार पर मिट्टी के दीये जलाएं, ताकि यह परंपरा जीवित रहे और हमारे भविष्य को भी रोशन करती रहे।
"प्रकाश जहां भी हो, वहीं खुशियों का सृजन होता है। आइए, मिट्टी के दीये जलाकर न केवल घरों को, बल्कि दिलों को भी रोशन करें।"
रविवार 05 2023
बिना प्रदूषण फैलाया इस साल दिवाली कैसे मनाए Celebrating a Special Diwali Without Pollution
Diwali: Thu, 9 Nov, 2023 – Wed, 15 Nov, 2023
दिवाली, रोशनी का त्योहार, भारत में सबसे व्यापक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। यह आनंद, एकजुटता और अंधकार पर प्रकाश की विजय का समय है। हालाँकि, हाल के वर्षों में, दिवाली के दौरान आतिशबाजी के अत्यधिक उपयोग ने वायु और ध्वनि प्रदूषण के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं, जिससे पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है। लेकिन डरें नहीं, क्योंकि आप अभी भी प्रदूषण के बिना एक विशेष दिवाली मना सकते हैं। त्योहार का आनंद लेने के कुछ पर्यावरण-अनुकूल तरीके यहां दिए गए हैं:
1. पर्यावरण-अनुकूल दीये और मोमबत्तियाँ चुनें Opt for Eco-friendly Diyas and Candles:
2. प्राकृतिक सामग्रियों से सजावट करें Decorate with Natural Materials:
फूलों की पंखुड़ियों, चावल या रंगीन रेत से बनी रंगोली से अपने घर की सजावट को निखारें। सजावट के लिए प्लास्टिक या सिंथेटिक सामग्री के बजाय गेंदे और अन्य ताजे फूलों का उपयोग करें।
3. पटाखों को ना कहें Say No to Firecrackers:
दिवाली के दौरान प्रदूषण कम करने का सबसे प्रभावी तरीका पटाखों से पूरी तरह बचना है। वे वायु और ध्वनि प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इसके बजाय, आकाश लालटेन जैसे शोर रहित और पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के साथ जश्न मनाएं, जो देखने में आश्चर्यजनक हैं और पर्यावरण के लिए कम हानिकारक हैं।
4. मिठाइयाँ और घर में बने व्यंजन बाँटें Share Sweets and Homemade Delicacies:
दिवाली प्यार और खुशियाँ बांटने का समय है। डिब्बाबंद मिठाइयाँ और स्नैक्स खरीदने के बजाय परिवार और दोस्तों के साथ घर में बनी मिठाइयाँ और स्नैक्स का आदान-प्रदान करें। इससे न केवल बर्बादी कम होती है बल्कि स्वास्थ्यवर्धक, परिरक्षक-मुक्त व्यंजन भी सुनिश्चित होते हैं।
5. सोच-समझकर उपहार दें Gift Thoughtfully:
पर्यावरण-अनुकूल और टिकाऊ उपहारों जैसे कि गमले में लगे पौधे, पुन: प्रयोज्य उत्पाद या हस्तनिर्मित शिल्प पर विचार करें। ये उपहार न केवल विचारशील हैं बल्कि ग्रह को हरा-भरा बनाने में भी योगदान देते हैं।
6. ऊर्जा की खपत कम करें Reduce Energy Consumption:
अपने घर को ऊर्जा-कुशल एलईडी बल्बों से रोशन करें और उपयोग न होने पर उन्हें बंद कर दें। इससे न केवल आपका बिजली बिल कम होगा बल्कि ऊर्जा संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
7. जरूरतमंदों को दान करें Donate to the Needy:
सद्भावना के संकेत के रूप में, स्थानीय दान में दान करने या कम भाग्यशाली लोगों की मदद करने पर विचार करें। यह दिवाली के दौरान देने की भावना का जश्न मनाने का एक शानदार तरीका है।
8. साफ़ और अव्यवस्था Clean and Declutter:
दिवाली उत्सव के एक भाग में आपके घर की सफ़ाई और गंदगी साफ़ करना भी शामिल है। यह न केवल एक सुखद वातावरण बनाता है बल्कि कल्याण की भावना को भी बढ़ावा देता है।
9. पशु कल्याण का सम्मान करें Respect Animal Welfare:
आतिशबाजी जानवरों के लिए भयावह हो सकती है, इसलिए अपने पालतू जानवरों की सुरक्षा के लिए सावधानी बरतें। उन्हें घर के अंदर रखें, एक सुरक्षित और शांत स्थान प्रदान करें, और यदि आवश्यक हो तो शांत करने वाली तकनीकों या उत्पादों का उपयोग करने पर विचार करें।
10. दूसरों को हरित होने के लिए प्रोत्साहित करें Encourage Others to Go Green
प्रदूषण के बिना एक विशेष दिवाली मनाना न केवल संभव है, बल्कि त्योहार की सच्ची भावना से जुड़ने का एक फायदेमंद तरीका भी है। सचेत विकल्प चुनकर, आप एक आनंदमय और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार दिवाली मना सकते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि रोशनी का त्योहार वास्तव में हमारे जीवन और हमारे आस-पास की दुनिया को रोशन करता है।
अनावश्यक खरीदारी और खर्चों से कैसे बचें How to avoid unnecessary Shopping and expenses
1. स्पष्ट वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करें Set Clear Financial Goals
अनावश्यक खरीदारी से बचने के लिए पहला कदम स्पष्ट वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करना है । अपनी वित्तीय प्राथमिकताओं को समझें, जैसे किसी विशिष्ट खरीदारी के लिए बचत करना, कर्ज चुकाना या आपातकालीन निधि बनाना । जब आपके पास अपने पैसे का स्पष्ट उद्देश्य होता है, तो आवेगपूर्ण खरीदारी का विरोध करना आसान हो जाता है ।
2. एक बजट बनाएं Create a Budget
बजट बनाना आपके वित्त के प्रबंधन और अनावश्यक खरीदारी पर अंकुश लगाने के लिए एक आवश्यक उपकरण है । अपनी वित्तीय स्थिति की स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने के लिए अपनी आय और व्यय पर नज़र रखना शुरू करें । फिर, एक बजट बनाएं जो आवश्यक, बचत और विवेकाधीन खर्च सहित विभिन्न श्रेणियों के लिए विशिष्ट राशि आवंटित करता है । गैर-आवश्यक वस्तुओं पर अधिक खर्च करने से बचने के लिए अपने बजट पर कायम रहें ।
3. अतिसूक्ष्मवाद को अपनाएं Embrace Minimalism
न्यूनतमवाद एक जीवनशैली है जो उपभोग में सादगी और सावधानी को प्रोत्साहित करती है । अतिसूक्ष्मवाद को अपनाकर, आप उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जो वास्तव में आपके लिए महत्वपूर्ण हैं और अनावश्यक खरीदारी की इच्छा को कम कर सकते हैं । अपने स्थान को अव्यवस्थित करें, और उन वस्तुओं को हटा दें जिनकी अब आपको आवश्यकता नहीं है । एक अव्यवस्था-मुक्त वातावरण आपके पास जो पहले से है उसकी सराहना करने में आपकी मदद कर सकता है ।
4. 30-दिवसीय नियम का अभ्यास करें Practice the 30-Day Rule
खरीदारी करने से पहले 30 दिन का नियम लागू करें. जब आपको कोई ऐसी चीज़ मिल जाए जो आप चाहते हैं, तो उसे खरीदने से पहले 30 दिनों तक प्रतीक्षा करें। इस प्रतीक्षा अवधि के दौरान, आकलन करें कि क्या वस्तु वास्तविक आवश्यकता है या तात्कालिक आवश्यकता है । अक्सर, आप पाएंगे कि समय के साथ खरीदारी करने की इच्छा कम हो जाती है, जिससे आपके पैसे की बचत होती है और अनावश्यक अव्यवस्था भी कम हो जाती है ।
5. खरीदारी की सूची बनाएं Make a Shopping List
जब आपको खरीदारी के लिए जाना हो, चाहे किराने के सामान के लिए या अन्य आवश्यक चीज़ों के लिए, पहले से एक सूची बना लें। अपने कार्ट में अतिरिक्त, अनावश्यक आइटम जोड़ने से बचने के लिए यथासंभव सूची का पालन करें । एक सूची रखने से आपको उस चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है जिसकी आपको वास्तव में आवश्यकता है ।
6. खुदरा ईमेल से सदस्यता समाप्त करें Unsubscribe from Retail Emails
खुदरा विक्रेता आकर्षक ईमेल प्रचार और छूट के साथ ग्राहकों को लुभाने में विशेषज्ञ हैं । जिन वस्तुओं की आपको आवश्यकता नहीं है उन्हें खरीदने का प्रलोभन कम करने के लिए खुदरा ईमेल सूचियों से सदस्यता समाप्त करें । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मार्केटिंग ईमेल की निरंतर बौछार से बचकर आप कितना पैसा बचा सकते हैं ।
7. माइंडफुल ऑनलाइन शॉपिंग का अभ्यास करें Practice Mindful Online Shopping
ऑनलाइन शॉपिंग ने त्वरित खरीदारी करना पहले से कहीं अधिक आसान बना दिया है । अनावश्यक ऑनलाइन शॉपिंग से बचने के लिए, अपने कार्ट में आइटम जोड़ें और फिर कुछ देर के लिए वेबसाइट छोड़ दें । इससे आपको यह सोचने का समय मिलता है कि क्या आप वास्तव में वस्तुओं को चाहते हैं या उनकी आवश्यकता है । इसके अलावा, खरीदारी को अंतिम रूप देने से पहले एक अतिरिक्त चरण बनाने के लिए एक-क्लिक खरीदारी विकल्पों को अक्षम करने पर विचार करें ।
8. मात्रा से अधिक गुणवत्ता चुनें Choose Quality Over Quantity
जब आप खरीदारी करें तो मात्रा से अधिक गुणवत्ता को प्राथमिकता दें । अच्छी तरह से बने, टिकाऊ उत्पादों में निवेश करें जो लंबे समय तक चलेंगे । हालाँकि उनकी अग्रिम लागत अधिक हो सकती है, वे अक्सर बार-बार प्रतिस्थापन की आवश्यकता को कम करके लंबे समय में आपका पैसा बचाते हैं ।
9. चीजों की नहीं, अनुभवों की तलाश करें Seek Experiences, Not Things
अपना ध्यान भौतिक संपत्ति संचय करने से हटाकर अनुभव एकत्रित करने पर केंद्रित करें । अपना समय और पैसा उन गतिविधियों पर खर्च करें जो आपके जीवन को समृद्ध बनाती हैं और स्थायी यादें बनाती हैं । भौतिक संपत्ति प्राप्त करने की तुलना में अनुभव अधिक संतुष्टिदायक हो सकते हैं ।
अनावश्यक खरीदारी से बचना एक सचेत अभ्यास है जिससे वित्तीय स्थिरता, अव्यवस्था कम हो सकती है और अधिक टिकाऊ जीवनशैली हो सकती है । स्पष्ट वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करके, बजट बनाकर, अतिसूक्ष्मवाद को अपनाकर और सचेत उपभोग का अभ्यास करके, आप आवेगपूर्ण खरीदारी के चक्र से मुक्त हो सकते हैं और अपने जीवन में जो कुछ भी लाते हैं उसके बारे में अधिक जानबूझकर विकल्प चुन सकते हैं । याद रखें कि आपकी संपत्ति का असली मूल्य इसमें है कि वे आपके जीवन और कल्याण को कैसे बढ़ाती हैं, न कि उनकी मात्रा में ।
सोमवार 23 2023
भारत अंतर्राष्ट्रीय मेगा व्यापार मेला 2023 India International Mega Trade Fair 2023
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भारत अंतर्राष्ट्रीय मेगा व्यापार मेला 2023
इंडिया इंटरनेशनल मेगा ट्रेड फेयर, भारत के बिजनेस कैलेंडर में सबसे उत्सुकता से प्रतीक्षित घटनाओं में से एक, 2023 में और भी अधिक वादे और महत्वाकांक्षा के साथ लौट रहा है । यह वार्षिक व्यापार मेला, जो उत्पादों, सेवाओं और व्यावसायिक अवसरों के व्यापक प्रदर्शन के लिए जाना जाता है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने, उद्यमिता को बढ़ावा देने और भारत की आर्थिक शक्ति को प्रदर्शित करने का एक मंच बन गया है । इस ब्लॉग में, हम भारत अंतर्राष्ट्रीय मेगा व्यापार मेला 2023 के विवरण और मुख्य आकर्षण का पता लगाएंगे ।
दिनांक एवं स्थान Date and Venue
भारत अंतर्राष्ट्रीय मेगा व्यापार मेला 2023, 22 दिसंबर 2023 से 2 जनवरी 2024 तक होने वाला है । यह आयोजन 12 दिनों तक चलेगा, जो इसे देश के सबसे विस्तारित व्यापार मेलों में से एक बना देगा । इस वर्ष के मेले का स्थान दिल्ली के पास ग्रेटर नोएडा में विशाल और अच्छी तरह से सुसज्जित इंडिया एक्सपो सेंटर और मार्ट है । यह विश्व स्तरीय सुविधा प्रदर्शकों और आगंतुकों के लिए पहुंच को आसान बनाने के लिए रणनीतिक रूप से स्थित है ।
मुख्य विचार Key Highlights
- विविध प्रदर्शक Diverse Exhibitors: मेले में भारत और दुनिया भर से विभिन्न प्रकार के प्रदर्शकों की मेजबानी की उम्मीद है । यह विविधता उपभोक्ता वस्तुओं से लेकर औद्योगिक उपकरण, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य उत्पादों और सेवाओं के व्यापक स्पेक्ट्रम को सुनिश्चित करती है । पर्यटक एक ही छत के नीचे अपनी जरूरत की हर चीज पाने की उम्मीद कर सकते हैं ।
- अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी International Participation: भारत अंतर्राष्ट्रीय मेगा व्यापार मेले की परिभाषित विशेषताओं में से एक इसका अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी पर जोर है । दुनिया भर के देशों के व्यवसायी और उद्यमी इसमें भाग लेंगे, जिससे यह वास्तव में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम बन जाएगा। यह भारतीय उद्यमियों को वैश्विक बाजारों से जुड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है ।
- बी2बी और बी2सी अवसर B2B and B2C Opportunities: मेला बिजनेस-टू-बिजनेस (बी2बी) और बिजनेस-टू-कंज्यूमर (बी2सी) दोनों इंटरैक्शन के अवसर प्रदान करता है । थोक सौदे और साझेदारी की तलाश करने वाले उद्यमी बी2बी सेगमेंट का पता लगा सकते हैं, जबकि उपभोक्ता बी2सी सेक्शन में अद्वितीय और विविध उत्पादों की खरीदारी का आनंद ले सकते हैं ।
- सांस्कृतिक असाधारण Cultural Extravaganza: मेला केवल व्यवसाय के बारे में नहीं है; यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी जश्न मनाता है । आगंतुक पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन, कला प्रदर्शनियों का अनुभव कर सकते हैं और भारत के विभिन्न क्षेत्रों के स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं।
- स्टार्ट-अप पवेलियन Start-up Pavilion: यह मेला स्टार्ट-अप्स को अपने नवीन उत्पादों और सेवाओं को प्रदर्शित करने के लिए एक समर्पित मंच प्रदान करता है । नवोदित उद्यमियों के लिए एक्सपोजर हासिल करने और संभावित निवेशकों और ग्राहकों से जुड़ने का यह एक उत्कृष्ट अवसर है ।
- सेमिनार और कार्यशालाएँ Seminars and Workshops: यह मेला व्यावसायिक रणनीतियों और ई-कॉमर्स रुझानों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों तक के विषयों पर सेमिनार और कार्यशालाओं की एक श्रृंखला का आयोजन करता है । ये ज्ञान-साझाकरण सत्र उन लोगों के लिए अमूल्य हैं जो वाणिज्य की तेज़ गति वाली दुनिया में आगे रहना चाहते हैं ।
- निवेश के अवसर Investment Opportunities: भारत अंतर्राष्ट्रीय मेगा व्यापार मेला केवल खरीदने और बेचने के बारे में नहीं है; यह निवेश के अवसरों का भी केंद्र है । निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए उभरते बिजनेस मॉडल और नवीन उद्यमों का पता लगा सकते हैं ।
- नेटवर्किंग Networking: संबंध और संबंध बनाना व्यापार मेले का एक महत्वपूर्ण पहलू है। आगंतुक और प्रदर्शक नेटवर्क बना सकते हैं, विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं और संभावित सहयोग का पता लगा सकते हैं, जिससे यह व्यवसाय जगत में किसी के लिए भी एक महत्वपूर्ण घटना बन जाएगी ।
आगंतुक अनुभव Visitor Experience
जो लोग मेले में भाग लेने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए अनुभव का अधिकतम लाभ उठाना महत्वपूर्ण है । आपकी यात्रा को बेहतर बनाने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं :
- आगे की योजना बनाएं Plan Ahead: कार्यक्रम के विशाल आकार और दायरे को देखते हुए, अपनी यात्रा की योजना पहले से बनाना आवश्यक है । तय करें कि आप किन प्रदर्शकों और सेमिनारों को प्राथमिकता देना चाहते हैं ।
- सूचित रहें Stay Informed: अपडेट और शेड्यूल के लिए आधिकारिक निष्पक्ष वेबसाइट और सोशल मीडिया चैनलों पर नज़र रखें ।
- बिजनेस कार्ड ले जाएं Carry Business Cards: यदि आप बी2बी सेगमेंट में हैं, तो सुनिश्चित करें कि आपके पास नेटवर्किंग के लिए बिजनेस कार्ड का ढेर तैयार है ।
- अन्वेषण Exploration: सभी मंडपों और स्टालों का अन्वेषण करने के लिए समय निकालें; आपको कोई अप्रत्याशित और रोमांचक चीज़ मिल सकती है ।
- सांस्कृतिक आनंद Cultural Delights: सांस्कृतिक कार्यक्रमों का अनुभव करना और स्वादिष्ट क्षेत्रीय व्यंजनों का आनंद लेना न भूलें ।
भारत अंतर्राष्ट्रीय मेगा व्यापार मेला 2023 व्यापार, संस्कृति और उद्यमिता का एक भव्य उत्सव बनने के लिए तैयार है । यह व्यवसायों को अपने क्षितिज का विस्तार करने, स्टार्ट-अप को चमकने और उपभोक्ताओं को शानदार खरीदारी में शामिल होने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है । अपने अंतरराष्ट्रीय फोकस और पेशकशों की विस्तृत श्रृंखला के साथ, यह मेला वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के बढ़ते महत्व का प्रमाण है । यदि आप व्यवसाय के प्रति उत्साही हैं या बस एक यादगार अनुभव की तलाश में हैं, तो दिसंबर 2023 में इस मेगा व्यापार मेले के लिए अपने कैलेंडर को चिह्नित करें ।
शुक्रवार 24 2023
नव वर्ष समारोह: विभिन्न धर्मों में अलग-अलग नया साल क्यों, कब और कैसे बनाया जाता है ?
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साल खत्म होने के साथ ही दुनिया भर के लोग नए साल का जश्न मनाने के लिए तैयार हो जाते हैं । जबकि एक नए साल की अवधारणा सार्वभौमिक है, जिस तरह से इसे मनाया जाता है वह विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में व्यापक रूप से भिन्न होता है । इस लेख में, हम उन तरीकों का पता लगाएंगे जिनमें विभिन्न धर्म नए साल का जश्न मनाते हैं ।
ईसाई धर्म के अनुसार नव वर्ष New year according to Christianity
ईसाई धर्म में 1 जनवरी को नव वर्ष दिवस मनाया जाता है, जिसे खतने का पर्व भी कहा जाता है । यह दिन बाइबिल के अनुसार, यीशु मसीह के खतने की याद दिलाता है, जो उनके जन्म के आठ दिन बाद हुआ था । कई ईसाई देशों में, चर्च सेवाओं, प्रार्थनाओं और भजनों के गायन के साथ नव वर्ष की पूर्व संध्या मनाई जाती है । यह आने वाले वर्ष के लिए प्रतिबिंब और संकल्प स्थापित करने का भी समय है ।
इसलाम के अनुसार नव वर्ष New year according to Islam
इस्लाम में, नया साल इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम के पहले दिन मनाया जाता है । इस दिन को हिजरी नव वर्ष कहा जाता है, और यह पैगंबर मुहम्मद के मक्का से मदीना प्रवास की याद दिलाता है । यह प्रतिबिंब और पश्चाताप का समय है, और मुसलमान अक्सर इस दिन उपवास और प्रार्थना करते हैं ।
हिन्दू धर्म के अनुसार नव वर्ष New year according to Hinduism
हिंदू धर्म में भारत के अलग-अलग हिस्सों में नए साल को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है । दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में 14 अप्रैल को नया साल मनाया जाता है, जिसे पुथंडु के नाम से जाना जाता है । इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और मंदिरों में जाते हैं ।
उत्तरी राज्य पंजाब में नया साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है, जिसे बैसाखी के नाम से जाना जाता है । यह दिन फसल के मौसम का प्रतीक है और संगीत, नृत्य और दावत के साथ मनाया जाता है ।
यहूदी धर्म के अनुसार नव वर्ष New year according to Jewish
यहूदी धर्म में, नया साल रोश हसनाह के दन मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है । यह दिन उच्च पवित्र दिनों की शुरुआत का प्रतीक है, जो योम किप्पुर, प्रायश्चित के दिन के साथ समाप्त होता है । रोश हसनाह प्रतिबिंब, पश्चाताप और नवीकरण का समय है । यह परिवार और दोस्तों के साथ दावत करने और मेढ़े के सींग से बने एक पारंपरिक यहूदी वाद्य यंत्र शोफर को बजाने का भी समय है ।
बुद्ध धर्म के अनुसार नव वर्ष New year according to Buddhist
बौद्ध धर्म में, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में नया साल अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है । कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों, जैसे थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस में, नया साल अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है, जिसे सोंगक्रान के नाम से जाना जाता है ।
यह दिन पारंपरिक थाई चंद्र कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है और इसे पानी के झगड़े, परेड और मंदिर के दौरे के साथ मनाया जाता है । जापान में, नया साल 1 जनवरी को एक पारंपरिक भोजन के साथ मनाया जाता है जिसे ओसेची-रयोरी कहा जाता है और मंदिरों और मंदिरों की यात्रा की जाती है ।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नव वर्ष New year according to Gregorian Calendar
ग्रेगोरियन कैलेंडर, जो दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला कैलेंडर है, 1 जनवरी को नए साल की शुरुआत का प्रतीक है । इस कैलेंडर का उपयोग कई देशों द्वारा किया जाता है और इसका नाम पोप ग्रेगरी XIII के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इसे 1582 में पेश किया था ।
चीनी कैलेंडर के अनुसार नव वर्ष New year according to Chinese Calendar
चीनी कैलेंडर, जिसे चंद्र नव वर्ष या वसंत महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है, शीतकालीन संक्रांति के बाद दूसरे अमावस्या पर नए साल की शुरुआत का प्रतीक है । यह आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर में 21 जनवरी से 20 फरवरी के बीच आता है ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उनके पर्व और त्यौहार
- Gregorian Calendar (used in the Western world): months, days, years, leap year
- Islamic Calendar: Hijri, lunar, months, fasting, Eid al-Fitr, Eid al-Adha
- Jewish Calendar: Hebrew, lunar, months, Rosh Hashanah, Yom Kippur, Hanukkah, Passover
- Hindu Calendar: lunar, solar, months, tithi, nakshatra, Diwali, Holi, Navratri
- Buddhist Calendar: lunar, solar, months, Vesak, Magha Puja, Asalha Puja
- Chinese Calendar: lunar, zodiac, months, Chinese New Year, Mid-Autumn Festival
- Sikh Calendar: Nanakshahi, lunar, solar, months, Gurpurabs, Vaisakhi
- Christian Calendar: liturgical, seasons, Advent, Christmas, Lent, Easter, Pentecost
- Bahá'í Calendar: solar, months, Naw-Rúz, Ridván, Bahá'í Fast
- Jain Calendar: lunar, months, Mahavir Jayanti, Paryushan.
शुक्रवार 10 2023
2023 ताज महोत्सव में भारतीय संस्कृति के वैभव का जश्न मनाए !

ताज महोत्सव दिवस
"18 फरवरी 2023"
ताज महोत्सव एक वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव है जो भारत के आगरा में दस दिनों तक प्रत्येक आने वाले साल के फरवरी के महीने में मनाया जाता है । यह उत्सव उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाता है ।
भारत में मुगल साम्राज्य की भव्यता और विरासत को मनाने के लिए भी विशेष रूप से दुनिया के सात आश्चर्य में से एक ताजमहल का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है । ताज महोत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं ।
जैसे शास्त्रीय संगीत, नृत्य, कठपुतली शो और लोक गीत । स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए पारंपरिक हस्तशिल्प, वस्त्र और अन्य उत्पादों को बेचने वाले स्टॉल भी हैं । इसके अलावा खाने के स्टॉल भी हैं जो क्षेत्र के विभिन्न प्रकार के पारंपरिक व्यंजन को पेश करते हैं ।
यह त्योहार क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है और इसमें दुनिया भर के पर्यटक शामिल होते हैं । यह स्थानीय कलाकारों और कारीगरों को अपने कौशल का प्रदर्शन करने और पर्यटकों को क्षेत्र के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास के बारे में जानने के लिए एक मंच प्रदान करता है ।
ताज महोत्सव की शुरुआत कैसे हुई ?
ताज महोत्सव का आयोजन पहली बार उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा वर्ष 1992 में किया गया था । इस महोत्सव की शुरुआत राज्य की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और क्षेत्र में पर्यटकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से की गई थी ।
अपनी स्थापना के बाद से ताज महोत्सव एक लोकप्रिय वार्षिक कार्यक्रम बन गया है जो भारत और विदेशों के हजारों पर्यटको को आकर्षित करता है । साथ ही यह त्यौहार राज्य के पारंपरिक संगीत, नृत्य और कला को भी प्रदर्शित करता है ।
कुल मिलाकर ताज महोत्सव भारत के सांस्कृतिक कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण घटना है और यह पर्यटकों के लिए इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं का अनुभव करने का एक अनूठा अवसर है ।
बुधवार 08 2023
विश्व दलहन दिवस -10 Feb 2023, World pulses day
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World pulses day 2023 |
विश्व दलहन दिवस "दालों की पोषण शक्ति का उत्सव"
10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस (World pulses day) मनाया जाता है, एक दिन जो हमारे आहार और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में दालों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के लिए समर्पित है । दालें, जिनमें दाल, छोले, बीन्स और मटर शामिल हैं, प्रोटीन, फाइबर और अन्य आवश्यक विटामिन और खनिजों का एक पौष्टिक और स्थायी स्रोत हैं ।
दालें कई संस्कृतियों में एक मुख्य भोजन हैं और दुनिया भर के अरबों लोगों द्वारा इसका सेवन किया जाता है । वे मांस के लिए कम लागत वाले, कम वसा वाले और कम सोडियम वाले विकल्प हैं, जो उन्हें स्वस्थ आहार का एक महत्वपूर्ण घटक बनाते हैं । दालें भी एक स्थायी भोजन का विकल्प हैं क्योंकि उनके पास कम कार्बन स्रोत हैं और बीफ़ और चिकन जैसे अन्य प्रोटीन स्रोतों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है ।
अपने पोषण संबंधी लाभों के अलावा, दालें भी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल हैं और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । वे अक्सर विकासशील देशों में उगाए जाते हैं जहां वे गरीबी को कम करने और छोटे पैमाने के किसानों की आजीविका में सुधार करने में मदद कर सकते हैं । दालें मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकती हैं क्योंकि इनमें नाइट्रोजन-फिक्सिंग गुण होते हैं जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करते हैं ।
विश्व दलहन दिवस मनाने के लिए अपने आहार में अधिक दालों को शामिल करने पर विचार करें । एक नया दाल-आधारित नुस्खा आज़माएं, जैसे कि दाल का सूप या छोले का सलाद, या प्रोटीन और फाइबर को अतिरिक्त बढ़ावा देने के लिए बस अपने पसंदीदा व्यंजन में दालें शामिल करें ।
अंत में, विश्व दलहन दिवस हमारे आहार और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में दालों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने का एक अवसर है । दालों की पोषण शक्ति को अपनाकर हम सभी के लिए अधिक टिकाऊ और स्वस्थ भविष्य बनाने में मदद कर सकते हैं ।
गुरुवार 04 2021
डाउनलोड कीजिए हैप्पी दिवाली इमेज और बधाइयां
शनिवार 02 2021
विश्व डाक दिवस 9 अक्टूबर 2022, World Postal Day
चिट्ठियों की यादें
"कागजों की तहरीरों पर सीमटी जज्बातों की बातें, हालात की बातें, तो हाल चाल की बातें, उस कागज के पुर्जे को खत कहा करते थे, पत्र कहा करते थे, तो चिट्ठी कहा करते थे । एक चिट्ठी के आने का इंतजार इतनी शिद्दत से होती थी कि उसके मिलने पर खुशियों का कोई ठिकाना नहीं होता था ।"
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Indian post office Logo |
लेकिन तकनीकी ने चिट्ठियों के सफर पर विराम लगा दिया । अब वे चिट्टियां ना तो लिखी जाती हैं और ना ही पढ़ी जाती हैं । लेकिन उन चिट्ठियों की यादें भरपूर जिंदा है आधुनिक दौर में चिट्ठी गुम हो गई है और हम भी अपनों से दूर हो चले हैं ।
कब से और क्यों मनाया जाता है विश्व डाक दिवस
9 अक्टूबर 2022 को विश्व डाक दिवस है इस मौके पर कुछ चिट्ठियों के सफर और डाकखाने पर एक नजर डाल रहे हैं साल 1874 में 9 अक्टूबर के दिन यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (UPU-Universal Postal Union) बनाने के लिए 22 देशों ने अपनी सहमति दी थी । सालों बाद 1967 में जापान के टोक्यो के एक आयोजन में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया गया । इसका मकसद था कि नागरिकों को डाक सुविधा से जोड़ा जाए और उनमें इसके लिए जागरूकता पैदा किया जाए । दुनिया के 142 देशों में पोस्टल कोड है जोकि यूनिवर्सल पोस्टल सेवा (UPS-Universal Postal Services) के तहत आते हैं ।
विश्व डाक दिवस 2022 का थीम
हर साल विश्व डाक दिवस अलग-अलग थीम के अनुसार में मनाया जाता है । इस दिन थीम के अंतर्गत ही काम किए जाते हैं । इस बार विश्व डाक दिवस 2022 का थीम "Post for Planet" है ।
भारत में डाक का महत्व
भारत में शुरू से ही डाक प्रणाली बहुत ही आधुनिक तरीके से इस्तेमाल किया जाता रहा है । भारत की डाक व्यवस्था पूरी दुनिया में एक उदाहरण माना जाता है क्योंकि यहां सबसे ज्यादा डाक इस्तेमाल किया जाता रहा है । भारत में दुनिया की सबसे बड़ी पोस्टल सर्विस (Postsl Service) है । जहां डेढ़ लाख से भी ज्यादा पोस्ट ऑफिस देश के कोने कोने में मौजूद हैं । भारत में पिन कोड नंबर के आधार पर चिट्टियां बांटी जाती है पिन कोड तय किए जाने की शुरुआत 15 अगस्त 1972 में हुई थी ।
दुनिया भर की अतरंगी डाकघर
पोस्ट ऑफिस केवल पुरानी इमारतें या फिर लाल डिब्बे वाले नहीं बल्कि कई पोस्ट ऑफिस अपने अनोखेपन की वजह से भी टूरिस्ट स्पॉट बन चुके हैं । इनमें से कुछ ऐसे हैं जैसे कि कश्मीर में तैरने वाला डल झील में बोट हाउस पर तैरता हुआ डाकघर । इसी तरह से वियतनाम में दुनिया का सबसे खूबसूरत पोस्ट ऑफिस है जिसे देखने के लिए दुनिया के कोने कोने से सैलानी आते हैं । Republic of Vanuatu में पानी में मछलियों के बीच पोस्ट बॉक्स रखा गया है जोकि वाटर प्रूफ है ताकि चिट्टियां गीली ना हो जाए और सुरक्षित अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचाई जा सके ।
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रविवार 19 2021
विश्व हृदय दिवस 29 सितंबर को क्यों मनाते हैं, World Heart Day 29 Sep 2022
विश्व हृदय दिवस क्यों मनाते हैं ?
हर साल 29 सितंबर को World Heart Day यानी विश्व हृदय दिवस मनाया जाता है । इस दिन को हृदय रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल तरह तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है विश्व ह्रदय दिवस पर हृदय से जुड़ी अलग-अलग संस्थाएं भी लोगों को जागरूक करती हैं ।
विश्व हृदय दिवस अस्तित्व में कब आया ?
विश्व हृदय दिवस 1999 में वर्ल्ड हर्ट एसोसिएशन (World Heart Association) के निदेशक Anthony Bes De Luna के पहल पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO-World Health Organization) ने इस दिवस को मनाने व हृदय से जुड़ी ढेर सारी जानकारियां लोगों में प्रसारित करने के लिए इस दिन को विश्व हृदय दिवस के रूप में चुना । और बताया कि इस खास दिन को हृदय से जुड़ी समस्याओं व रोगों के बारे में जितना भी हो सके ज्यादा से ज्यादा लोगों में जागरूकता फैलाई जाए ।
जिससे कि लोग अपने स्वास्थ्य अपने हृदय की देखरेख संपूर्ण रूप से स्वयं करें और एक लंबा जीवन जीने का अनुभव प्राप्त करें ।पहले यह दिवस सितंबर के आखिरी रविवार को मनाया जाता था । परंतु 2014 में इस दिवस को मनाने के लिए 29 सितंबर की तारीख निर्धारित की गई । तब से लेकर आज तक प्रत्येक वर्ष ह्रदय दिवस 29 सितंबर को मनाया जाने लगा ।
विश्व हृदय दिवस की जरूरत भारत में सबसे ज्यादा क्यों है ?
भारत में हर पांचवा व्यक्ति दिल का मरीज है वर्ल्ड हर्ट फेडरेशन (World health Fedration) के अनुसार ह्रदय संबंधी बीमारियों से हर साल करीब 18 मिलियन मरीजों की मौत हो जाती है । देखा जाए तो यह दिवस भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरे विश्व की एक बड़ी आबादी इस देश में रहती है। इस तरह से सबसे ज्यादा जागरूकता की आवश्यकता भारत में रहने वाले लोगों को है । भारत में अभी भी स्वास्थ्य के प्रति बहुत सारी सुविधाएं विकसित करनी बाकी है ।
विश्व हृदय दिवस का थीम, Theme of world heart day 2022
इस बार विश्व हृदय दिवस का 29 सितंबर 2022 का थीम "Use heart for heart" रखा गया है। वहीं पिछले 5 सालों में विश्व हृदय दिवस का थीम इस प्रकार था
- 2021 Use to heart connect with your heart
- 2020 Use heart to beat cardiovascular disease
- 2019 For my heart, for your heat, for all our heart
- 2018 My heart, your heart
- 2017 Share the power
- 2016 Power your life